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Tuesday, May 18, 2010

थे अर म्हे

थे तो घूमो चाँदणी में

म्हे भटका अन्धेरां में !

थे देवो गांवां में भाषण

म्हे रोजी ढूँढा शहरा में!

थे पुळ रो उद्घाटन करियो

बिसूं बहग्या जद लहरां में!

थे बोल्या म्हे सुणता रैया

थे गिनलिया म्हाने बहारा में!

रतन जैन

1 comment:

Amitraghat said...

"वाह! बहुत बढ़िया .."