थर थर धुजे डील , धरम री छाती फाटी
सामो ऊभो पाप हाथ मै लीण्या लाठी!
लाठी लीयां हाथ पाप बढ बा दे नाहीं
आगा राखे पाँव , दे गाब्हड़ रे माहीं !
कह दास संगराम, भजन री करड़ी घाटी
करणी है जे पार प्रेम री पढ़ लै पाटी!
प्रस्तुति: गुलराज जोशी , पड़िहारा
घणी खम्मा
सिंघ नीं देख्यो तो देख बिलाई
जम नीं देख्यो तो देख जंवाई !
प्रेषक : दया सुमन दाधीच , जयपुर
Thursday, February 4, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment