थे तो घूमो चानणा में
म्हे भटका अन्धेरा में।
थे देवो गावां में भाषण
थे पुळ रो उद्घाटन करियो
बीसूं मरग्या जड़ लहरां में ।
थे बोल्या म्हे सुणता रैया
थे गिणी या म्हाने बहारां में।
रतन जैन
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