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Thursday, June 9, 2011

रतन जैन की कवितायेँ

प्रेम रो परबत
प्रेम रो परबत रूप रो झरणों
चोखो लागे, अठे ठहरणों ।
कातिल आँख्यां बोझल सांसां
खुद पर ही सरमाणों, मरणों ।
झुरमुट में म्हे , आँख्यां में थे
बात बात पर रूठणों, मन णों ।
मेघा रे झीणे आँचल में
चाँदड़ले रो लुकणों छिपणों ।
एक नशों है, कविता लिखणों
जो नी जाणे कदे उतरणों




okho

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