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Friday, June 10, 2011

थे

थे तो घूमो चानणा में


म्हे भटका अन्धेरा में।


थे देवो गावां में भाषण



  1. म्हे रोजी ढूंढा शहरां में।

थे पुळ रो उद्घाटन करियो


बीसूं मरग्या जड़ लहरां में ।


थे बोल्या म्हे सुणता रैया


थे गिणी या म्हाने बहारां में।


रतन जैन

Thursday, June 9, 2011

रतन जैन की कवितायेँ

प्रेम रो परबत
प्रेम रो परबत रूप रो झरणों
चोखो लागे, अठे ठहरणों ।
कातिल आँख्यां बोझल सांसां
खुद पर ही सरमाणों, मरणों ।
झुरमुट में म्हे , आँख्यां में थे
बात बात पर रूठणों, मन णों ।
मेघा रे झीणे आँचल में
चाँदड़ले रो लुकणों छिपणों ।
एक नशों है, कविता लिखणों
जो नी जाणे कदे उतरणों




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