काणी बहू अर जलेड़ो दूद पीढयां ताणी लजावै।
आंगल्याँ स्यूं नूँ परे कोनी हुवे बीनणी।
काम का न काज का , दुश्मण अनाज का!
काले रे कालो न जलमे तो किल्ड काबरो जरूर जलमे!
घणो स्याणो कागलो, दै गोबर में चांच!
घणी खम्मा
आंख्यां मांय गीड भरया
नान्व मिर्गानेणी !
रतन जैन, पड़िहारा
Sunday, January 31, 2010
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