आंख्यां माहीं गीड पड़्या नाँव मिर्गानेणी!
देखा-देखी साजै लोग, सीजे काया बधे रोग !
इयाँ ही रांडा रो बोकरसी, इयाँ ही पांवना जीम बोकर सी !
आंधी आयी ही कोनी, सूंसाट पैली ही माच्ग्यो !
आँख गयी संसार गयो, कान गयो हुंकार गयो !
रतन जैन
Tuesday, December 15, 2009
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